द्वापर युग में, कामदेव ने भगवान कृष्ण के पुत्र, प्रद्युम्न के रूप में अवतार लिया।
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भगवान शिव द्वारा कामदेव को भस्म करने की कथा
जब दक्ष प्रजापति, भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र, ने महायज्ञ का आयोजन किया था और सती देवी एवं उनके पति, भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया था । तब सती देवी निमंत्रण न देने के लिए अपने पिता से भिड़ने चली गईं थी, लेकिन सती देवी के पिता ने भगवान शिव का घनघोर अपमान किया। अपने पति के अपमान से आहत और अपने पिता के दुर्व्यवहार से नाराज होकर उन्होंने ने यज्ञाग्नि में आत्मदाह कर लिया । सती देवी की मृत्यु के बाद, महादेव ने मोह-माया को छोड़कर तपस्या में लीन हो गए।
इसी घटनाक्रम के पश्चात, तारकासुर ने देवलोक पर आक्रमण कर इंद्र और अन्य देवताओं को परास्त कर दिया। देवतागण अपनी हार के बाद तुरंत ब्रह्मा जी और विष्णु जी के पास मदद के लिए पहुंच गए। देवतागणों ने सभी वृतांत भगवान ब्रह्मा और भगवन विष्णु को सुनाया तब, ब्रह्मा जी ने देवताओं को बताया की तारकासुर का वध अभी सृष्टि में कोई नहीं कर सकता क्यूंकि उसका वध करने वाला अभी जन्मा ही नहीं है । देवतागण निराश होकर उनसे याचना करने लगे तब भगवान ब्रह्मा ने सभी को बताया की सती देवी ने हिमालय के घर पार्वती देवी के रूप में जन्म लिया है और उपयुक्त आयु के पश्चात उनका विवाह शिव भगवान से होगा। तारकासुर का वध महादेव और पार्वती का पुत्र कार्तिकेय ही कर सकेगा। सभी देवतागण प्रसन्न हो, महादेव और पार्वती के पुत्र कार्तिकेय के जन्म की प्रतीक्षा कर रहे थे।
जब पार्वती जी विवाह के लिए उपयुक्त उम्र में पहुंचीं, तो सभी देवता अधीर हो उठे परन्तु उन्हें ज्ञात था की महादेव तपस्या में लीन हैं। सभी देवतागण तपस्यारत महादेव को जगाने की युक्ति खोजने लगे। सभी देवतागण को तब कामदेव का स्मरण हुआ और सभी उनसे मदद मांगने गए। ऐसी विषम परिस्थिति में सभी देवताओं के अनुनय पर कामदेव उनकी मदद के लिए तैयार हो गए। कामदेव ने महादेव पर तीर चलाया जिससे भगवान शिव के भीतर कामुक इच्छा विकसित होने लगी और उनकी तपस्या में विघ्न आ गयी। भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए और क्रोध में अपनी तीसरी आंख खोल दी, कामदेव भगवान शिव की तीसरी आंख से निकली क्रोधाग्नि से भस्म हो गए।
कामदेव के भस्म हो जाने के बाद, उनकी पत्नी रति ने बहुत विलाप किया और महादेव से क्षमा मांगी। रति देवी ने अनुनय कर अपने पति को पुनर्जीवित करने की विनती की। शिव जी का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने कामदेव को बिना शरीर के जीवन दान दिया लेकिन । रति ने भगवान शिव से कामदेव के शरीर को भी वापस करने की प्रार्थना की। शिव जी ने कहा कि कामदेव ने मेरे मन को विचलित कर दिया है, इसलिए वह भस्म हुआ है और अब यदि उसे शरीर की कामना है तो उसे महाकाल वन में जाकर मेरी पूजा करनी होगी।

भगवान कृष्ण के पुत्र के रूप में कामदेव का अवतरण
शिव भगवान के कथनुसार, कामदेव ने महाकाल वन में जाकर पूरी श्रद्धा के साथ शिवलिंग की पूजा की और परिणामस्वरूप, भगवान शिव प्रसन्न होकर प्रकट हुए और कहा कि ” कामदेव, आपको द्वापर युग तक बिना शरीर के रहना होगा तत्पश्चात द्वापर युग में भगवान विष्णु के कृष्ण अवतार के पुत्र के रूप में आप अवतरित होंगे। आप श्री कृष्ण के पहली पत्नी, रुक्मणी देवी के गर्भ से जन्म लेकर अपने शरीर वापस पाएंगे, और आपको प्रद्युम्न नाम से जाना जायेगा । द्वापर युग में शिव भगवान के कथनुसार, कामदेव का अवतरण, श्री कृष्ण और रुक्मणी देवी के पुत्र, प्रद्युम्न के रूप में हुआ था।
श्री कृष्ण के साथ दुश्मनी के कारण, दानव शंभरासुर ने उनके पुत्र प्रद्युम्न का अपहरण कर लिया और उसे समुद्र में फेंक दिया। एक विशाल मछली ने प्रद्युम्न को निगल लिया परन्तु वह मछली मछुआरों द्वारा पकड़ ली गयी। संयोगवश वही मछली शंभरासुर की रसोई तक पहुंच गयी । रति देवी अपने पति के संरक्षण हेतु रसोई में काम करने वाली महिला मायावती का रूप ले लिया और शंभरासुर की रसोई में प्रद्युम्न को मछली से निकाला। तत्पश्चात रति देवी ने एक माँ की तरह उनकी देखभाल की और जब प्रद्युम्न युवा हुए तो उन्हें अपने पूर्व जीवन की याद दिलाई। देवी रति ने प्रद्युम्न को सारी शिक्षा तथा युद्धकला में पारंगत किया। प्रद्युम्न ने बाद में शंभरासुर का वध किया और रति देवी रुपी मायावती को अपनी पत्नी के रूप में द्वारका ले गए थे ।