वैभवलक्ष्मी माँ व्रत की विधि

व्रत के दिन प्रातःकाल उठकर नित्यकर्म तथा स्नानादि के बाद स्वच्छ कपडे धारण करके माँ लक्ष्मी का श्रद्धाभाव से स्मरण करना चाहिए | पूजा स्थल मे श्री यंत्र रखना चाहिए । व्रत करते समय माता लक्ष्मी के अष्टलक्ष्मी रूप – श्री गजलक्ष्मी, श्री आदिलक्ष्मी, श्री विजयलक्ष्मी, श्री ऐश्वर्यलक्ष्मी, श्री वीरलक्ष्मी, श्री धनलक्ष्मी, श्री धान्यलक्ष्मी, एवं श्री सन्तानलक्ष्मी तथा श्रीयन्त्र को प्रणाम करना चाहिए ।

पूजा मे बैठने के लिए स्वकछ आसन में बैठकर घी, पुष्प, धूप, दीप, कलश, चंदन, मीठी खीर या नेवैद्य आदि से माँ की पूजा करनी चाहिए । पूजा स्थल मे साफ कपड़े मे थोड़ा चावल रख लें तथा उसपर तांबे के कलश मे जल भरकर रख दें । उस कलश के ऊपर माँ लक्ष्मी से संबंधित वस्तु (सोना, चांदी, रुपया इत्यादि) रख पूजा आरंभ करनी चाहिए एवं आरती करनी चाहिए । व्रत के दिन उपवास रखना चाहिए तथा सूर्यास्त पश्चात फलाहार या बिना नमक का भोजन किया जा सकता है ।

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चित्र: माँ लक्ष्मी

वैभवलक्ष्मी माता की व्रत कथा

एक समय बड़े शहर में लाखों लोग रहते थे | पहले के ज़माने के लोगों के विपिरित नए ज़माने के लोग मेल जोल के साथ नहीं रहते थे | सब अपने काम में रत रहकर दूसरों की परवाह नही करते थे | एक ही घर के सदस्यों को भी एक दूसरे की परवाह नहीं होती थी | लोगों मे भजन – कीर्तन, भक्ति भाव, दया – माया, परोपकार जैसे संस्कार कम होकर बुराइयाँ बढ़ गई थीं | सारे संस्कारहीन तथा चरित्रहीन कार्य – शराब, जुआ, रेस, व्यभिचार, चोरी – डकैती वगैरह बहुत से गुनाह शहर में होते थे |

इतनी सारी बुराइयों के बावजूद शहर में कुछ अच्छे लोग भी रहते थे | ऐसे अच्छे लोगों में शीला और उनके पति की गृहस्थी मानी जाती थी | शीला काफी धार्मिक प्रकृति की और संतोषी थी | उनका पति भी विवेकी और सभ्य था |शीला और उसका पति सदैव ईमानदारी से जीते थे | वे कभी भी किसी से द्वेष, ईर्ष्या तथा किसी की बुराई भी नहीं करते थे और अपना समय प्रभु भजन में लीन होकर व्यतीत करते थे | उनके गृहस्थी एवं जीवन को सभी आदर्श मानते थे तथा सराहना भी करते थे । |

शीला की गृहस्थी सौहार्द से चल रही थी परंतु शीला के पति के पिछले जन्म के कर्म को भोगना बाकी था और इसीकारण वह बुरे लोगों से दोस्ती कर बैठा | वह जल्द से जल्द करोड़पति होने के ख्वाब देखने लगा | जल्द से जल्द पैसे वाला बनने के लालच में दोस्तों के साथ जुआ भी खेलने लगा और करोड़पति की बजाय रोडपति बन गया और सारी संपाती खो बैठा । उसकी हालत रास्ते पर भटकते भिखारी जैसी हो गयी | एक वक्त ऐसा था जब वह सुशील पत्नी शीला के साथ प्रभु भजन में सुख शांति से अपना वक्त व्यतीत करता था | जबकि अब उसके घर में दरिद्रता और भूखमरी फैल गई | सुख से खाने के बजाय दो वक्त भोजन के लाले पड़ गए थे |

शीला सुशील और संस्कारी स्त्री थी और अब उसके पति का व्यवाहर बदल गया था । उसको अपने पति के बर्ताव से बहुत दुःख होता था किन्तु वह भगवान पर भरोसा करके बड़ा दिल रख कर दुःख सह लेती थी | कहा जाता है कि ‘सुख के बाद दुःख’ और ‘दुःख के बाद सुख’ आता है | कठिन परिस्थियों के पश्चात भी श्रध्दा के साथ शीला प्रभु भक्ति में लीन रहने लगी |

अचानक एक दिन दोपहर को उनके द्वार पर किसी ने दस्तक दी | शीला सोच में पड़ गई कि मुझ जैसे गरीब के घर इस वक्त कौन आया होगा ? फिर भी द्वार पर आये हुए अतिथि का आदर करना चाहिए | ऐसे आर्यधर्म के संस्कार वाली शीला ने खड़े होकर द्वार खोला | देखा तो सामने एक माँ जी खड़ी थी | वे बड़ी उम्र की लगती थी किन्तु उनके चेहरे पर अलौकिक तेज था और उनकी आखों से मानो अमृत बह रहा था | उनका भव्य चेहरे से करुणा और प्यार झलक रहा था | उनको देखते ही शीला के मन में अपार शांति छा गई वैसे शीला इस माँ जी को पहचानती नहीं थी | फिर भी उनको देखकर शीला के रोम रोम में आनंद छा गया और शीला उनको आदर के साथ घर के अंदर ले आई | घर में बिठाने के लिए कुछ भी नहीं था अत: शीला संकुचा कर एक फटी हुई चद्दर पर उनको बिठाया |

माँ जी ने कहा “ क्यों शीला ! मुझे पहचाना नही ?” शीला ने कहा “ माँ ! आपको देखकर बहुत ख़ुशी हो रही है | बहुत शांति हो रही है | ऐसा लगता है कि मैं बहुत दिनों से जिसे ढूढ रही थी वे आप ही है | पर मैं आपको पहचान नहीं सकती |” माँ जी ने हंस कर के कहा “क्यों ? भूल गई ? हर शुक्रवार को लक्ष्मी जी के मंदिर में भजन कीर्तन होते हैं, तब मैं भी वहाँ आती हूँ | वहाँ हर शुक्रवार को हम मिलते है |”

जबसे पति गलत रास्ते पर चढ़ गया तब से शीला बहुत दुखी हो गई थी और दुःख की मारी वह लक्ष्मी जी के मंदिर में भी नहीं जाती थी | बाहर के लोगों के साथ नज़र मिलाते उसे शर्म लगती थी | उसने याददास्त पर जोर दिया पर यह माँ जी याद नहीं आ रही थी |तभी माँ जी ने कहा “तू लक्ष्मी जी के मंदिर में कितने मधुर भजन गाती थी | आजकल तू दिखाई नहीं देती थी , इसलिए मुझे ज्ञात करना था कि तू क्यों नहीं आती है? कहीं बीमार तो नहीं हो गयी है न? ऐसा सोचकर मैं तुझे मिलने चली आई हूँ |”माँ जी के अति प्रेम शब्दों से शीला का ह्रदय पिघल गया | इसकी आखों में आसूं आ गए माँ जी के सामने वह बिलख बिलख कर रोने लगी | यह देखकर माँ जी शीला के नजदीक सरकी और उसकी सिसकती पीठ पर प्यार भरा हाथ फेरकर सान्त्वना देने लगी |

माँ जी ने कहा, “बेटी ! सुख और दुःख तो धूप और छाँव जैसे होते हैं | सुख के पीछे दुःख आता है, तो दुःख के पीछे सुख भी आता है | धैर्य रखो बेटी और तुझे क्या परेशानी है ? तू अपना दर्द मुझे सुना | इससे तेरा मन तो हल्का होगा ही और तेरे दुःख का कोई उपाय भी मिल जायेगा |”

उनकी बाते सुनकर शीला के मन को बड़ी शांति मिली | उसने माँ जी से कहा, “माँ ! मेरी गृहस्थी में भरपूर सुख और खुशियां थीं | मेरे पति भी बहुत सुशिल थे | भगवान की कृपा से पैसे की बात में भी हमें बड़ा संतोष था | हम शांति से गृहस्थी चलाते और ईश्वर भक्ति में अपना वक्त व्यतीत करते थे | यकायक हमारा भाग्य हमसे रूठ गया | मेरे पति की बुरी दोस्ती हो गयी | बुरी दोस्ती की वजह से वे शराब, जुआ, रेस, चरस, गांजा वगैरह ख़राब आदतों के शिकार हो गए है और उन्होंने सब कुछ गवां दिया और अब हम लोग रास्ते के भिखारी जैसे बन गए है |”

यह सुन कर माँ जी ने कहा “ऐसा कहा जाता है कि, कर्म की गति न्यारी होती है | हर इन्सान को अपने कर्म भुगतने ही पड़ते है | इसलिए तू चिंता न कर अब तू कर्म भुगत चुकी है | अब तुम्हारे सुख के दिन अवश्य आयेगे | तू तो माँ लक्ष्मी जी की भक्त है | माँ लक्ष्मी जी तो प्रेम और करुणा की अवतार है | वे अपने भक्तों पर हमेशा ममता रखती है | इसलिए तू धैर्य रख कर माँ वैभवलक्ष्मी जी का व्रत कर | इससे सब कुछ ठीक हो जाएगा |”

वैभवलक्ष्मी व्रत करने की बात सुनकर शीला के चेहरे पर चमक आ गई | उसने माँ जी से व्रत विधि की जानकारी ली | माँ जी ने भी वैभवलक्ष्मी व्रत की शास्त्रीय विधि उसे विस्तार से सुनाया जिसे सुनकर शीला भावविभोर हो उठी | उसे लगा मानो सुख का रास्ता मिल गया है | उसने आंखे बंद करके मन ही मन उसी क्षण संकल्प लिया कि हे वैभवलक्ष्मी माँ ! मैं भी माँ जी के कहे मुताबिक श्रद्दा से शास्त्रीय विधि अनुसार वैभवलक्ष्मीव्रत इक्कीस शुक्रवार तक करूंगी और  व्रत की शास्त्रीय विधि अनुसार उद्द्यापन भी करूंगी | शीला ने संकल्प करके आँखे खोली तो सामने कोई भी न था | वह विस्मित हो गई की माँ जी आखिर कहा चली गई ? ये माँ जी और कोई नहीं बल्कि साक्षात् लक्ष्मी जी थी | चूकी शीला लक्ष्मी जी की परम भक्त थी इसलिए वो अपने भक्त को रास्ता दिखाने के लिए स्वयं ही आई थी |

संयोगवश दूसरे दिन शुक्रवार था | शीला ने पुरे मन और श्रद्दा भाव से वैभवलक्ष्मी का व्रत रखा और पूजा के प्रसाद को सबसे पहले अपने पति को खिलाया | प्रसाद खाते ही पति के स्वभाव में फर्क पड़ गया | उस दिन उसने शीला को मारा नहीं और न ही उसे सताया | शीला को बहुत आनन्द हुआ एवं उसके मन में वैभवलक्ष्मी व्रत के प्रति श्रद्दा और बढ़ गई |

इस तरह शास्त्रीय विधिपूर्वक शीला ने श्रद्दा से व्रत किया और तुरंत ही उसे इसका फल मिला | उसका पति जो गलत रास्ते पर चला गया था वो अब अच्छा आदमी बन गया और कड़ी मेहनत करके व्यवसाय करने लगा | माँ लक्ष्मी जी के वैभवलक्ष्मी व्रत के प्रभाव से उसको व्यवसाय में ज्यादा मुनाफा हुआ | उसने तुरंत शीला के गिरवी रखे गहने छुड़वा लिए | शीला के घर में अब पहले जैसी सुख – शांति छा गई |

व्रत उद्द्यापन विधि

वैभव लक्ष्मी व्रत का उद्द्यापन ग्यारह या इक्कीस जो मानी हो उतने शुक्रवार पूरी श्रद्दा और भावना से करने पर आखिरी शुक्रवार को किया जाता है | हर शुक्रवार की तरह आखिरी शुक्रवार को भी माँ वैभवलक्ष्मी की शास्त्रीय विधि से पूजा की जाती है और श्रीफल फोड़े जाते है | खीर या नैवेद्य को प्रसाद स्वरूप बनाकर भी रखना चाहिए |

श्रीफल फोड़ने के बाद कम से कम सात कुमारी या सौभाग्यशाली स्त्रियों को कुमकुम का तिलक करके वैभवलक्ष्मी व्रत की पुस्तक उपहार स्वरुप भेट करनी चाहिए और सब को खीर का प्रसाद देना चाहिए फिर धनलक्ष्मी स्वरुप वैभवलक्ष्मी स्वरुप माँ लक्ष्मी जी की छवि को प्रणाम करके मन ही मन भावुकता से प्रार्थना करते हुए कहना चाहिए –

हे माँ धनलक्ष्मी ! हे माँ वैभवलक्ष्मी ! मैनें सच्चे ह्रदय से आपका वैभवलक्ष्मी व्रत पूरा किया है तो हे मां मैंने जो मनोकामना की थी उसे पूरा करो | हमारा और सबका कल्याण करों | जिसके पास संतान नहीं है उसे तुम संतान दो तथा सौभाग्यशाली स्त्रियों का सौभाग्य अखंड रखना और मां कुवारी लड़कियों को मनभावन पति देना | जय माँ वैभवलक्ष्मी | आप का ये चमत्कारी वैभव लक्ष्मी व्रत जो कोई भी करे तुम उनकी सारी विपत्ति दूर करना और समस्त संसार को सुखी रखना माँ | हे मां तुम्हारी महिमा अपरम्पार है | इस प्रकार से उद्द्यापन करके आप चाहे तो दुबारा फिर कभी भी वैभवलक्ष्मी व्रत कर सकते है |