दुनिया में जब भी प्रेम का उल्लेख होता है तब राधा कृष्ण का नाम सर्वोपरि आता है । राधा कृष्ण का नाम, प्रगाढ़ प्रेम के लिए एक अतुलनीय मिसाल है । परंतु क्या आपने यह सोचा है इतने प्रगाढ़ प्रेम के बावजूद उनका प्रेम अधूरा क्यों रह गया ? क्यों राधा-कृष्ण एक ना हो सके? क्यों राधा कृष्ण का विवाह ना हो सका? इस लेख में हम इसी प्रश्न इसी प्रश्न पर रोशनी डालेंगे ।

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चित्र: राधा कृष्णा

इन सब में पहली धारणा यह है कि, एक बार एक भक्त ने भगवान विष्णु की कई सालों तक कठोर तपस्या की । भक्त की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर श्री विष्णु उसके समक्ष प्रकट हुए और उससे मनचाहा वरदान मांगने के लिए बोले । भक्त, श्री विष्णु को देखकर प्रफुल्लित हो गया और बोला “मैं चाहता हूं लक्ष्मी जी मेरी अर्धांगिनी बनें ।” चूंकि भक्त ने कठोर तपस्या के पश्चात यह वरदान मांगा था, श्री विष्णु ने कहा “तथास्तु। अगले जन्म में लक्ष्मी जी तुम्हारी अर्धांगिनी बनेंगीं ।”

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चित्र: राधा कृष्णा

द्वापर युग में उस भक्त का अगला जन्म हुआ और भगवान विष्णु के दिए हुए वरदान को फलीभूत करने के लिए लक्ष्मी जी, राधा के रूप में अवतरित हुईं। वैसे द्वापर युग में लक्ष्मी जी चार रूपों में अवतरित हुई , रुकमणी , सत्यभामा, जामवंती एवं राधा।

लक्ष्मी नारायण का प्रेम अद्वितीय एवं अलौकिक है तथा वे नारायण के अलावा किसी दूसरे पुरुष की संपूर्ण अर्धांगिनी नहीं बन सकती थीं। इसीलिए श्री विष्णु से, लक्ष्मी जी को पत्नी पाने का वरदान मांगने वाला भक्त, उस जन्म में नपुंसक पैदा हुआ। राधा कृष्ण को ज्ञात था कि दोनों का मिलन इस जीवन में नहीं हो सकता किन्तु फिर भी राधा और कृष्ण आपस में बचपन से ही काफी प्रेम करते थे ।

श्री कृष्ण जब कंस का वध करने मथुरा चले गए तब राधा जी के घर वालों ने उनका विवाह अयन ( वरदान प्राप्त भक्त) से कर दी गई । राधा रानी और अयन का विवाह तो हो गया परंतु वे कभी एक ना हो सके। राधा सदैव श्री कृष्ण को ही प्रेम करतीं रहीं और कृष्ण की ही बन कर रहीं ।

राधा कृष्णा
चित्र: राधा कृष्णा

दूसरी धारणा के अनुसार एक दिन कृष्ण यशोदा मैया के पास गए और उन्हें बताया कि वह राधा से विवाह करना चाहते हैं लेकिन यशोदा मैया ने उन्हें यह कहते हुए राधा को अस्वीकार कर दिया कि वह उनसे से पांच साल बड़ी हैं । लेकिन कृष्ण अपनी बातों पर कायम रहे और उन्होंने अपनी जिद नहीं छोड़ी। बाद में नंदलाल घर आए और उन्होंने भी श्री कृष्ण को समझाने की कोशिश की परंतु कृष्ण ना माने। 

नंदलाल, श्री कृष्ण को अपने गुरु गर्गाचार्य के पास ले गए। गर्गाचार्य ने उन्हें समझाने की कोशिश की, वे नारायण हैं, वे इस संसार के रक्षक तथा धर्म के रक्षक हैं और यह उनके जीवन का लक्ष्य नहीं है। इस पर भी श्रीकृष्ण ना माने और उन्होंने यह कह कर मना कर दिया कि वे धर्म रक्षक और संसार के रक्षक नहीं बनना चाहते हैं । वह एक आम जिंदगी व्यतीत करना चाहते हैं जिसमें वह राधा से विवाह करें और खुशी से गाय चरा सके । वे बोले की वे वृंदावन के पहाड़ों, पेड़ों पशुओं, और लोगों से बेहद प्रेम करते हैं तथा उन्हें छोड़कर नहीं जाना चाहते ।

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चित्र: राधा कृष्णा

गर्गाचार्य ने श्री कृष्ण की यह वाणी सुनकर यह महसूस किया  कि श्रीकृष्ण को उनकी नियति बताने का वक्त आ गया है और उन्होंने श्रीकृष्ण को उनके जीवन के लक्ष्य के बारे में बताया । उन्होंने श्रीकृष्ण को उनके असली माता पिता के बारे में उन्हें बताया और उन्हें उनके अवतरित होने के उद्देश्य और लक्ष्य से अवगत कराया। श्री कृष्ण को अपने जीवन का उद्देश्य ज्ञात होने के पश्चात सब स्मरण हो गया और उन्हें अपने अंदर एक परिवर्तन महसूस हुआ । अब वह एक परिवर्तित व्यक्ति थे । अब वह शरारती चरवाहे नहीं रहे थे । कृष्ण जानते थे वृंदावन में रहने का उनका समय अब समाप्त हो चुका है लेकिन वह जाने से पहले एक बार आखिरी बार सभी गोपियों के साथ रासलीला करना चाहते थे । श्री कृष्ण ने आखिरी बार सभी गोपियों के साथ रासलीला की ।

रासलीला के बाद कृष्ण, राधा के पास गए और उन्हें अपनी बांसुरी सौंप दी और कहा “हे राधे, यह लो मेरी बांसुरी अब इसका मेरे पास कोई काम नहीं है । यह मैं तुम्हारे लिए ही बजाता था और आज से मैं इसे कभी नहीं बजाऊंगा।” इतना कहकर श्री कृष्ण ने वृंदावन छोड़ दिया और अपने जीवन काल में फिर कभी नहीं लौटे।