भगवान शिव
चित्र: भगवान शिव

भगवान शिव कौन हैं

भगवान शिव ही आदि हैं और वे ही अंत भी हैं । वह धार्मिकता हैं, ज्ञान हैं, तपस्वी हैं, वैराग्य हैं,  वैभव हैं और वह ही परमात्मा भी हैं । वह निराकार हैं और साकार भी हैं। वह ही परमाणु हैं और वह ही ब्रह्मांड भी हैं । वह अतुलनीय हैं और उनकी कोई सीमा नहीं है। वे योग की उच्चतम अवस्था में तल्लीन, योग के पिता आदियोगी हैं। वह ही तांडव करके ब्रह्माण्ड को नृत्य सीखाने वाले नटराज  हैं। वे ही डमरू बजाकर संगीत के सृजनकर्ता, डमरूवालें हैं। वह ही काल के स्वामी, महाकाल हैं और वे ही पशुओं के स्वामी, पशुपति भगवान भी हैं।

वह एक ऊर्जा हैं जिसे न तो बनाया गया है और न ही नष्ट किया जा सकता है, लेकिन उस ऊर्जा को केवल महसूस किया जा सकता है। कोई भी वास्तव में शिव को नहीं समझ सकता, लेकिन जो कोई भी उन्हें खोजने की कोशिश करता है, वह उन्हें अपनी आत्मा में या हर जगह अपने आसपास पा सकता है। भगवान शिव किसी भी रूप को प्राप्त करने में सक्षम हैं। उनकी कृपा के बिना कोई भी मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता है।  वे त्रिदेव में संहारक की भूमिका निभाते हैं परन्तु उन्होंने असंख्य बार ब्रह्मांड के रक्षक की भूमिका भी निभाई है।

पृथ्वी पर, भगवान शिव अपनी पत्नी पार्वती और अपने गण के साथ कैलास पर्वत पर निवास करते हैं। उनके भक्त दुनिया भर में उनकी पूजा शिवलिंग के रूप में करते हैं। महादेव को भोलेनाथ कहा जाता है क्यूंकि वह अपने भक्तों की पूजा से बहुत आसानी से प्रसन्न हो जाता है और उन्हें अपनी कृपा प्रदान करते हैं ।

 कैलाश पर्वत
चित्र: कैलाश पर्वत

भगवान शिव का मूल

देवाधिदेव महादेव शिव सर्वव्यापी हैं लेकिन भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा के बीच स्पर्धा शुरू होने के बाद उन्होंने अपना साकार रूप धारण किया था । शिव महापुराण के अनुसार, ब्रह्मांड के निर्माण के बाद, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा ने सर्वोच्च बनने की प्रतिस्पर्धा हो गयी थी। इस स्पर्धा के कारण, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा ब्रह्मांड की ओर अपने कर्तव्यों से भटक गए। इस प्रतियोगिता को समाप्त करने के लिए, महादेव ने प्रकाश के एक स्तंभ का रूप लिया और आकाशवाणी करके घोषणा की कि जो कोई भी प्रकाश के स्तंभ का अंत खोज लेगा, वह सर्वोच्च होगा।

जैसे ही आकाशवाणी हुई, भगवान ब्रह्मा अपने वाहन हंस पर बैठ आकाश की ओर तथा भगवान विष्णु ने अपना वराह रूप धारण कर धरती के अंदर की ओर प्रकाश के स्तंभ का अंत खोजने के लिए चले गए । भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा ने अंत का पता लगाने का अथक प्रयास किया परन्तु वे विफल रहे। जब उन्होंने अपनी असफलता स्वीकार किया तब भगवान शिव उस प्रकाश के स्तंभ से साकार रूप में बाहर आए। भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा ने जब भगवान शिव के दर्शन किये तब उन्हें अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ। उन्होंने महादेव के साकार रूप को नमन  किया और उनको सर्वोच्च मान लिया ।

ब्रह्मा विष्णु महेश
चित्र: ब्रह्मा विष्णु महेश

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महादेव के वाहन नंदी बैल कौन हैं?

नंदी स्वयं भगवान का अवतार हैं

  • नंदी: नंदी बैल भगवान शिव के वाहन हैं तथा उनको अत्यंत प्रिय हैं। नंदी शिवगण के प्रमुख हैं और सदैव भगवान की सेवा करने के लिए तत्पर रहते हैं।  नंदी महादेव के मंदिर में अवश्य उपस्थित होते हैं।ऐसा माना जाता है कि शंभूनाथ नंदी जी की बात सुनते हैं, और इसीलिए महादेव के मंदिर में नंदी जी के कान में मांगी गई कोई भी इच्छा शंभूनाथ तक पहुंचती है और पूरी हो जाती है।

नंदी की जन्म कथा

ऋषि शिलाद ने भगवान शिव को गंभीर तपस्या से प्रसन्न किया और भगवान शिव से  वरदान प्राप्त किया था कि वह उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे। तब भगवान ने ऋषि के पुत्र, नंदी के रूप में अवतार लिया। नंदी भगवान शिव के एक भक्त के रूप में बड़े हुए और नर्मदा नदी (नंदिकेश्वर मंदिर, जबलपुर, मध्य प्रदेश) के किनारे त्रिपुर तीर्थक्षेत्र में तपस्या करने लगे। उनकी समर्पित तपस्या से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें अपना वाहन और शिवगण का प्रमुख बना दिया ।

शिव एवं उनके वाहन नंदी
चित्र: शिव एवं उनके वाहन नंदी
  • योगी: महादेव ब्रह्मांड के पहले योगी, आदियोगी हैं। महादेव ज्यादातर ध्यान मुद्रा में ही रहते हैं।
  • त्रिनेत्र: भगवान शिव की तीन आंखें हैं, और इसीलिए उन्हें त्रयम्बक के नाम से जाना जाता है। शिव की तीसरी आंख उनके ध्यानशक्ति को दर्शाती है, और उनका ध्यानशक्ति भौतिकता से परे है। भगवान शिव के त्रिनेत्र; अतीत, वर्तमान और भविष्य के ज्ञान को प्रदर्शित करती हैं। भगवान शिव आदियोगी हैं और उनकी इच्छाओं और क्रोध पर नियंत्रण है, लेकिन जब भी वे क्रोधित होते हैं, तो उनकी तीसरी आंख की ज्वाला सब कुछ भस्म कर देती है। भगवन तीसरी आँख पूरी तरह कभी बंद नहीं होती जो प्रतीक के रूप में, उनके सर्वज्ञ होना दर्शाता है।

अर्धचंद्र क्यों धारण करते हैं भगवान शिव?

  • चंद्रमा: भगवान शिव अपने सिर पर चंद्रमा एक मुकुट की तरह धारण करते हैं, और इसीलिए महादेव ‘चंद्रशेखर’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। शास्त्रों के अनुसार, एक बार चंद्रमा शापित हो गए थे और अपनी चमक खो दिया था। भगवान शिव की उपासना के बाद चंद्रमा ने अपने चमक को पुनः प्राप्त कर लिया और शाप मुक्त हुए थे । चंद्रमा ने भगवान शिव से मुकुट की तरह अर्धचंद्र पहनने का अनुरोध किया, जिसे महादेव ने स्वीकार कर उन्हें धारण किया था । प्रतीक के रूप में, चंद्रमा को शुरू से मस्तिष्क से संबंधित माना जाता है, और भगवान आदियोगी शिव का मस्तिष्क पर पूर्ण नियंत्रण है।

भगवान शिव को नीलकंठ क्यों कहा जाता है?

  • नीला कंठ: भगवान शिव का कंठ नीला है, यही वजह है कि उन्हें नीलकंठ के नाम से जाना जाता है। समुद्र मंथन के दौरान जब हलाहल विष की उत्पत्ति  हुई, तब संहारकर्ता महादेव ब्रह्मांड के रक्षक बनकर उस हलाहल विष को ग्रहण किया था । माता पार्वती ने अपनी योग माया से भगवान शिव के गले में हलाहल विष को रोक दिया था जिससे उनके गले का वह क्षेत्र नीला हो गया और महादेव नीलकंठ नाम से विख्यात हुए ।
shiv shankar
चित्र: भगवान शिव

भगवान शिव अपने शरीर में भस्म क्यों लगाते हैं?

  • भस्म: भगवान शिव हमेशा अपने शरीर को अपनी पत्नी सती की राख से ढकते हैं।प्रतीक के रूप में, यह भस्म दर्शाता है की महाकाल, जीवन और मृत्यु के चक्र से परे हैं।

शिव के माथे पर तीन धारियां होती हैं, उन्हें क्या कहा जाता है?

  • त्रिपुंड: महादेव के माथे पर तीन धारियां जिसे त्रिपुंड कहा जाता है, उनके तीन गुणों; सत्त्व गुण, रजस गुण और तमस गुण पर नियंत्रण का प्रतिक है।

शिव के जटाओं से गंगा कैसे बहती है?

  • गंगा: गंगा भगवान शिव के जटा से बहती है, और इसी कारण उन्हें गंगाधर बोला जाता है । शास्त्रों के अनुसार, राजा भागीरथी ने गंगा नदी को पृथ्वी पर लाने के लिए तपस्या की जिससे माँ गंगा प्रसन्नतापूर्वक पृथ्वी पर बहने को तैयार हो गई थीं, लेकिन समस्या यह थी कि, यदि वह पृथ्वी पर सीधे स्वर्ग से उतारती तो पाताललोक चली जाती। भगवान शिव, गंगा और पृथ्वी के बीच मध्यस्थ बन गए। उन्होंने अपने जटाओ को खोल गंगा जी को स्वर्ग से सीधे अपने जटाओ में समाहित कर लिया था और नियंत्रित वेग से पृथ्वी पर बहाया था । तब से महादेव की जटाओं से पवित्र गंगा पृथ्वी पर बह रही है।

भगवान शिव, बाघ की खाल क्यों पहनते हैं?

  • बाघ का खाल: भगवान शिव, बाघ का खाल पहनते हैं। शास्त्रों के अनुसार, महादेव बिना कपड़ों के पृथ्वी पर विचरण कर रहे थे तब कुछ ऋषिोंयों ने उनको बिना पहचाने गड्ढे में एक विशाल बाघ के साथ गिराकर उनको मारने की साजिश रची। ऋषियों के नियोजित षड्यंत्र के अनुसार, भगवान शिव गड्ढे में गिर गए लेकिन विशाल बाघ को मार दिया। ऋषियों ने तब भगवान को पहचाना और उनसे क्षमा मांगी। ऋषियों ने उनसे कपड़े पहनने का आग्रह कर उस मृत बाघ की खाल भेंट की जिसे महादेव ने धारण किया।प्रतीक के रूप में, बाघ शारीरिक शक्ति का प्रतीक है, और भगवान की शक्ति भौतिक से परे है।

भगवान शिव के गले में नाग क्यों है?

  • साँप: भगवान अपने गले में साँपों के राजा ‘वासुकिनाथ’ को धारण करते हैं। शास्त्रों के अनुसार, वासुकिनाथ शिव के प्रबल भक्त थे। वासुकिनाथ की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्होंने वासुकिनाथ को गले से लगा लिया था।एक प्रतीक के रूप में, सांप पृथ्वी पर सबसे अधिक भयभीत प्राणी हैं, और सांपों के साथ भगवान यह दर्शाता है कि भगवान ने सभी भयों पर विजय प्राप्त की है।
  • त्रिशूल: भोलेनाथ त्रिशूल धारण करते हैं। जब महादेव ने रूप लिया, तो तीन गुण, “सत्व, रजस और तमस” की उत्पत्ति हुई, और त्रिशूल, “सत्व, रजस और तमस” तीनो गुणों के संतुलन का प्रतिनिधित्व करता है।
  • डमरू: भगवान शिव हमेशा डमरू को अपने साथ रखते हैं, और इसीलिए उन्हें डमरूवाला कहा जाता है। जब भगवान ने डमरू बजाया था तब ब्रह्माण्ड में ध्वनि की उत्त्पति हुयी थी । उस ध्वनि से ही संगीत के सुरों की भी उत्त्पति हुयी थी।
  • जटा: भगवान शिव के लंबे बालों की जटाऐं हैं और इसी कारण से उन्हें जटाधारी कहा जाता है।प्रतीक के रूप में, भगवान शिव आदियोगी हैं, जो हमेशा ध्यान में तल्लीन रहते हैं और बाहरी सुंदरता पर ध्यान नहीं देते हैं।