रावण, भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। स्कन्द पुराण के अनुसार, एक बार, उसने  शिव भगवान की तपस्या शुरू की और समर्पित रूप से कई वर्षों तक कठोर तपस्या करते रहा। महादेव, रावण के समर्पण से खुश हो गए और उसके सामने प्रकट हुए। भगवान शिव ने रावण से पूछा कि वह क्या चाहता है। रावण सोचने लगा कि वह वास्तव में भगवान शिव से क्या चाहता है क्योंकि रावण पहले से ही राजा था और उसके पास सब कुछ था। वह पहले से ही पराक्रमी था और युद्ध में कोई भी उसे परास्त नहीं कर सकता था । तभी रावण ने सोचा कि एकमात्र सुंदर महिला ही है जो उसको प्राप्त नहीं है। रावण को ज्ञात था की ब्रह्माण्ड में सबसे सुंदर पार्वती देवी हीं हैं और वो भगवान शिव की अर्धांगिनी हैं, लेकिन फिर भी रावण ने पार्वती जी को वरदान में मांग लिया।

भगवान शिव तो भोलेनाथ हैं और भक्तों से प्रसन्न होकर कोई भी वरदान दे देते हैं।  रावण के वरदान में पार्वती जी के मांगने के बाद भी शिव भगवान ने कुछ नहीं सोचा और अपनी सबसे प्रिय पार्वती जी को भोलेनाथ ने रावण को दे दिया। पार्वती जी को ज्ञात था की महादेव उनका त्याग नहीं कर सकते और ये बस त्रिदेव की लीला है। इसीलिए जब रावण लंका नगरी जाने लगा तो पार्वती जी भी उसके साथ गयीं।

भगवान विष्णु अपने निवास वैकुंठ लोक से समस्त घटनाक्रम देख रहे थे। भगवान विष्णु को भी ये ज्ञात था की भोलेनाथ महादेव ने वरदान देने से पहले कभी नहीं सोचते और अपने भक्त को जो मांगे वह देते हैं। जब उन्होंने इस घटना को देखा तो वह रावण को मिलने अपने मोहिनी अवतार में पहुंच गए। रावण अपने राज्य लंका नगरी के रास्ते पर था तब उसे मोहिनी अवतार ने रोक दिया। भगवान विष्णु का मोहिनी अवतार सबको सम्मोहित कर देता है और मोहिनी ने रावण को सम्मोहित कर सोचने के लिए कहा कि यह कैसे संभव है कि भगवान शिव उसे अपनी अर्धांगिनी दे सकते हैं। जरूर भगवान शिव ने इस नकली पार्वती को अपनी शक्तियों से बना दिया होगा। मोहिनी ने रावण को आश्वस्त कर दिया कि उसके साथ जो पार्वती है वो असली नहीं है, और असली पार्वती को महादेव ने अपने आसन के नीचे छिपा दिया है । मोहिनी अवतार में भगवान विष्णु ने रावण को आश्वस्त कर दिया की भगवान शिव ने उसे छला   है।

shiv parvati
चित्र: शिव पार्वती

रावण क्रोधित होकर भगवान शिव के निवास, कैलाश पर्वत पर वापस गया और असली पार्वती को लौटाते हुए भगवान शिव से कहा की उसे उनके आसन के नीचे छिपी पार्वती चाहिए । भगवान शिव अन्तर्यामी हैं, वे सब कुछ जानते थे। उन्होंने अपनी शक्ति से अपने आसन के नीचे से पार्वती जी के प्रतिरूप का निर्माण कर रावण को दे दिया। पार्वती जी के प्रतिरूप को लेकर रावण खुशी-खुशी अपने लंकानगरी चला गया।

रावण के लंका जाने के बाद भगवान विष्णु कैलाश में प्रकट हुए। तब महादेव ने सभी को सम्बोधित करते हुए कहा की भक्त को अपने भगवान पर भरोसा करना चाहिए। भगवान अपने भक्तों में कभी भेद भाव नहीं करते तथा भक्त को कभी धोखा नहीं देते हैं। मैंने अपनी अत्यंत प्रिय अर्धांगिनी को भक्त की तपस्या के फलस्वरूप दे दिया था परन्तु भक्त ने मुझपर ही संदेह किया। जिस भगवान की तपस्या के पश्चात वरदान प्राप्त हुआ उसी भगवान पर संदेह करना, उनका अपमान है और जिसे अपने भगवान पर ही संदेह है तो उसकी उसी भगवान पर आस्था मिथ्या है।

कथा का सार

भगवान सर्वव्यापी हैं और उनपर कभी भी संदेह नहीं करना चाहिए। यदि किसी को भगवान पर संदेह हो तो उस भक्त की आस्था तथा भक्ति मिथ्या है।