
देवराज इंद्र के बारे में
इंद्र देवताओं के राजा हैं तथा वर्षा के देवता हैं। वेदों में इंद्र का कई बार उल्लेख है, और वह हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण वैदिक भगवान में से एक हैं। उनका वाहन विशाल ऐरावत हाथी है और वह हिंदू दवताओं में सबसे शक्तिशाली अस्त्र, ‘वज्र’ धारण करते हैं। वह ऋषि कश्यप तथा माता अदिति के पुत्र हैं। उनकी पत्नी का नाम शची है और इंद्र की अर्धांगिनी होने के कारण उन्हें इन्द्राणी कहा जाता है । सोमरस इंद्र का अत्यंत प्रिय पेय है और वो उन्हें ऊर्जा देती हैं । भगवान इंद्र का स्वभाव बहुत क्रोधी प्रवर्ति का हैं। उन्होंने वृत्रासुर जैसे कई असुरों को परास्त किया है। ऐसा कहा जाता है कि वृत्रासुर के साथ युद्ध करते समय, इंद्र ने सोमरस से भरे तीन तालाबों को खाली कर दिया।
देवराज इंद्र हमेशा से ही अपने मित्रों के रक्षक, सहायक और मित्र रहे हैं। इंद्र ऋग्वेद के पीठासीन देवता हैं और आर्यों के भगवान के रूप में कहा गया है।। उन्हें वर्षा के देवता के रूप में पूजने का उल्लेख है जिसके परिणाम स्वरुप वह अंधेरे के राक्षस को हटाते है। इंद्र देव की शक्तियां और गुण के अनुसार वे यूरोप में पूजे जाने वाले देवताओं जैसे ज़्यूस, जुपिटर, थोर और ओडिन से मेल खाते हैं। कई प्रसिद्ध पौराणिक कहानियों से पता चलता है कि देवराज इंद्र चतुर एवं कपटी थे। उनके द्वारा पीड़ित मनुष्य को बहुत ही अधिक कठिन परिस्थितियों से गुजरना पड़ता था।

ऋषि गौतम की पत्नी देवी अहिल्या की कहानी
देवी अहिल्या ब्रह्मा जी की बेटी थीं। ब्रह्मा जी ने अहिल्या को ब्रह्माण्ड की सबसे सुंदर स्त्री बनाया था जिसके कारण उनकी सुंदरता के प्रभाव में सभी देवता उनसे विवाह करना चाहते थे। ब्रह्मा जी ने देवी अहिल्या का स्वयंवर आयोजित किया जिसमें उन्होंने प्रतियोगिता रखी कि जो कोई भी सर्वप्रथम तीनों लोकों की यात्रा पूरी करेगा वही देवी अहिल्या का पाणिग्रहण करेगा ।
देवराज इंद्र, अहिल्या की सुंदरता से बहुत प्रभावित थे और अहिल्या को अपनी पत्नी बनाना चाहते थे। इसके लिए, इंद्र ने अपनी सभी दिव्य शक्तियों का इस्तेमाल कर चपलता से त्रिलोक की यात्रा पूरी कर ली । यात्रा पूरी कर देवराज भगवान ब्रह्मा के पास गए और उनको अपने प्रतियोगिता में विजयी होने की सुचना दी। इंद्र, देवी अहिल्या से विवाह करने के लिए प्रस्ताव कर ही रहे थे की तभी वहां नारद मुनि प्रकट हो गए और भगवान ब्रह्मा को सूचित किया कि ऋषि गौतम ने इंद्र देव से पहले त्रिलोक का भ्रमण कर प्रतियोगिता जीत ली थी और वही देवी अहिल्या का पाणिग्रहण करेंगे। तत्पश्चात ऋषि गौतम और देवी अहिल्या का विवाह हुआ।
देवराज इंद्र अंतिम क्षण में देवी अहिल्या से विवाह नहीं कर सके और क्रोध में उन्होंने देवी अहिल्या के साथ छल करने का विचार किया। एक बार जब ब्रह्म मुहूर्त में गौतम ऋषि बाहर स्नान करने गए तब इंद्र, गौतम ऋषि का रूप धारण कर देवी अहिल्या को छल दिया । जैसे ही ऋषि गौतम को इस बारे में पता चला तो उन्होंने अहिल्या को शाप दिया और उन्हें पत्थर बना दिया। बाद में त्रेता युग में, भगवान श्री राम ने उन्हे चरण स्पर्श करके शापमुक्त किया था ।
महारथी कर्ण की कहानी
कर्ण अपनी दानवीरता के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। सूर्योदय के पश्चात वह नियमित रूप से सभी को दान दिया करते थे और मांगे जाने वाली कोई भी वस्तु का दान कर देते थे। महारथी कर्ण भगवान सूर्य के पुत्र थे और जन्म के समय, सूर्यदेव ने कर्ण को दिव्य ‘कवच’ तथा ‘कुंडल’ प्रदान किया था। वह कवच अविनाशी था और उसने अपने दुश्मन के आक्रमण से कर्ण की रक्षा की।
महाभारत के दौरान, जब अर्जुन और कर्ण युद्ध में लड़ने जा रहे थे, देवराज इंद्र, अर्जुन के पिता, ब्राह्मण भेष में कर्ण के पास जाकर उनसे उनका कवच दान स्वरुप मांग लिया था। सूर्यदेव ने महारथी कर्ण को इस होने वाली घटना से पहले ही अवगत करा दिया था फिर भी उन्होंने सूर्योदय के पश्चात अपनी दिनचर्या के अनुसार दान देने से हिचके नहीं। उन्होंने मांगे जानेपर अपना कवच हर्ष के साथ इंद्र देव को दे दिया था। इसी कारण, अर्जुन कर्ण को युद्ध में परास्त कर पाए थे।

इंद्रदेव को शक्तिशाली अस्त्र वज्र कैसे प्राप्त हुआ
देवराज इंद्र जब स्वर्ग के राजा बने तब उन्हें कई बार असुरों से युद्ध करने पृथ्वी आना पड़ता था। एक बार युद्ध के पश्चात इंद्र देव ने समस्त देवताओं के अस्त्रों को ऋषि दधीचि के निवास स्थान पर छोड़ दिया और सोचा अगले युद्ध में अस्त्रों को वापस ले जाएगें । ऋषि दधीचि की पत्नी को उनका यह दायित्व लेना पसंद नहीं आया। ऋषि दधीचि भी देवताओं के अपने अस्त्रों को वापस ले जाने की प्रतीक्षा करने लगे परन्तु कोई देवता नहीं आए। वह देवताओं के दिव्य अस्त्र उनका दायित्व बन गए थे और उन्हें उनको खोने का डर से विचलित कर रहा था। इसी विचलितता में उन्होंने लम्बे प्रतीक्षा के बाद उन सारे अस्त्रों को अपने तेज से तरल बनाकर पी लिया।
उधर, इंद्र देव ने जब ऋषि त्वष्टा के पुत्र, त्रिसिरा का वध कर दिया तब ऋषि त्वष्टा ने क्रोध में अत्यंत कठिन यज्ञ से माँ शक्ति को प्रसन्न कर यज्ञपुत्र वृत्रासुर प्राप्त किया । ऋषि की प्रतिशोध भावना से की गयी यज्ञ के कारण, उनका पुत्र असुर था। ऋषि त्वष्टा ने वृत्रासुर को उसके उत्पत्ति के तदोपरांत शीघ्र ही भगवान ब्रह्मा की तपस्या कर उनसे अजेय होने का वर प्राप्त करने का आदेश दिया।
अपने पिता के आदेशानुसार वृत्रासुर जंगल में जाकर भगवान ब्रह्मा की तपस्या में लीन हो गया । भगवान ब्रह्मा उसके अत्यंत कठोर तपस्या से जल्द ही प्रसन्न हुए और उससे वर मांगने को कहा।
वृत्रासुर ने भगवान ब्रह्मा से वरदान मांगा कि इस सृष्टि में किसी भी लकड़ी या धातु से बने हथियार से न मरे। भगवान ब्रह्मा उसके द्वारा कही गई बातों को दोहराते हुए उसको वह वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गए ।
वृत्रासुर ने वरदान पाते ही स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। उस समय देवताओं के अस्त्र ऋषि दधीचि के पास थे और निशस्त्र देवताओं को वृत्रासुर ने आसानी से हरा दिया। देवतायें अपने अस्त्रों के लिए ऋषि दधीचि के पास लौटे तो ऋषि ने उन्हें सारा वृतांत बता दिया। देवतायें अब अपने अस्त्रों के साथ साथ स्वर्गलोक भी खो चुके थे। इंद्र और अन्य सभी देवतायें भगवान विष्णु के पास मदद के लिए गए। भगवान ने सभी देवताओं को ऋषि दधीचि की अस्थियां प्राप्त करने के लिए कहा, जिसे वृत्रासुर को मारने के लिए एक हथियार के रूप में बदल दिया जाए।
श्रीमद्भागवत पुराण, शिव पुराण और स्कंदपुराण के अनुसार, ऋषि दधीचि की हड्डियां एक सामान्य इंसान की हड्डी नहीं थीं। वे अपने तपबल से अत्यंत शक्तिशाली थे। इसलिए भगवान विष्णु ने देवताओं से ऋषि दधीचि की अस्थियाँ प्राप्त करने के लिए भेजा था। सभी देवगण ऋषि दधीचि के स्थान पर पहुँचकर उनको श्री हरी के आदेश बताकर उनसे उनकी अस्थियां मांगी। ऋषि ने अत्यंत प्रसन्न होकर देवताओं से कहा कि “मुझे नश्वर शरीर की आवश्यकता नहीं है। भगवान विष्णु के आदेश पूरा करने के बाद, मैं उनके निवास वैकुंठ लोक में मोक्ष को प्राप्त करूंगा।”
उन्होंने ऐसा कहकर वहीं धरा पर बैठकर अपने देह को त्याग दिया। देवराज इंद्र, ऋषि दधीचि की अस्थियों को वैकुंठ लोक ले आए। वैकुंठ लोक श्री हरी के अनुदेश में भगवान विश्वकर्मा ने हड्डियों से शक्तिशाली दिव्यास्त्र का निर्माण कर इन्द्र देव को धारण करने को दे दिया । भगवान विष्णु ने तब इंद्र देव से कहा, “देवेंद्र, अब तुम्हारे पास सृष्टि का सबसे शक्तिशाली अस्त्र है। जाओ वृत्रासुर का वध करो।” देवराज इंद्र, वृत्रासुर के साथ युद्ध करने गए और वज्र से उसका वध कर दिया ।